आगरा लाईव न्यूज। फर्जी दस्तावेजों के सहारे शस्त्र लाइसेंस हासिल करने के बहुचर्चित और हाई-प्रोफाइल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को दी गई गिरफ्तारी से राहत यानी अरेस्टिंग स्टे को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जब तक एफआईआर कायम है, तब तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तारी से संरक्षण देना कानून की मूल भावना के खिलाफ है। इस फैसले के बाद फर्जी शस्त्र लाइसेंस रैकेट में शामिल आरोपियों की गिरफ्तारी का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 दिसंबर 2025 को दिए गए अपने अहम आदेश में हाईकोर्ट के उस निर्देश को भी निरस्त कर दिया, जिसमें विवेचना को 90 दिनों की समय-सीमा में पूरा करने का आदेश दिया गया था। अदालत ने कहा कि आपराधिक मामलों में जांच एजेंसियों पर समय-सीमा थोपना उनके अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है और इससे निष्पक्ष, स्वतंत्र व प्रभावी जांच प्रभावित हो सकती है। कोर्ट ने साफ किया कि गंभीर आपराधिक मामलों में जांच को उसकी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ने देना आवश्यक है।
जांच में सामने आए तथ्यों ने इस मामले को और भी गंभीर बना दिया है। एसटीएफ की विवेचना में यह खुलासा हुआ है कि नेशनल शूटर मोहम्मद अरशद खान ने फर्जी पैन कार्ड, आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल कर अलग-अलग स्थानों से पांच शस्त्र लाइसेंस हासिल किए। आरोप है कि उसने खुद को कुशल निशानेबाज साबित करने और विदेश से हथियार मंगाने की पात्रता पाने के लिए अपनी जन्मतिथि में भी हेरफेर की। वहीं, मोहम्मद जैद खान पर भी जाली दस्तावेजों के सहारे शस्त्र लाइसेंस प्राप्त करने के गंभीर आरोप लगे हैं।
इस पूरे रैकेट में शस्त्र शाखा के तत्कालीन लिपिक संजय कपूर की भूमिका भी जांच के घेरे में है। जांच एजेंसियों का दावा है कि संजय कपूर ने लाइसेंस धारकों से मिलीभगत कर सरकारी रिकॉर्ड में गलत प्रविष्टियां कीं और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर शस्त्र लाइसेंस जारी कराने में अहम भूमिका निभाई। संजय कपूर भले ही अब सेवानिवृत्त हो चुका हो, लेकिन उसके खिलाफ लगे आरोपों को बेहद गंभीर माना जा रहा है। इस मामले में 24 मई 2025 को आगरा एसटीएफ में तैनात इंस्पेक्टर यतींद्र शर्मा की ओर से थाना नाई की मंडी में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। मुकदमे में फर्जी शस्त्र लाइसेंस, अवैध हथियारों की खरीद-फरोख्त और आपराधिक साजिश जैसे संगीन आरोप लगाए गए। एफआईआर में मोहम्मद जैद, नेशनल शूटर मोहम्मद अरशद खान, राजेश कुमार बघेल, भूपेंद्र सारस्वत, शिव कुमार सारस्वत और रिटायर्ड असलहा बाबू संजय कपूर को नामजद किया गया था।
एसटीएफ ने इस केस में कई महीनों तक गहन दस्तावेजी और तकनीकी जांच की थी, जिसके बाद पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ। केस दर्ज होने के बाद आरोपी हाईकोर्ट पहुंचे थे। कुछ याचिकाएं वहीं खारिज हो गई थीं, जबकि एक आदेश में हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी से राहत देते हुए विवेचना की समय-सीमा तय कर दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को पूरी तरह खारिज कर दिया है। इस हाई-प्रोफाइल मामले से जुड़े दो अन्य मुकदमे भी फिलहाल जांच के दायरे में हैं, जिनकी विवेचना आगरा पुलिस कमिश्नरेट कर रहा है। एक मुकदमा पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम भदौरिया द्वारा दर्ज कराया गया है, जिसमें उन्होंने अपनी खरीदी गई पिस्टल को अवैध बताते हुए शिकायत की है। दूसरा मुकदमा आरोपित शोभित चतुर्वेदी की ओर से कोर्ट के आदेश पर राजेश कुमार बघेल के खिलाफ दर्ज कराया गया है, जिसमें भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि जब तक एफआईआर रद्द नहीं होती, तब तक गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगाई जा सकती। हालांकि कोर्ट ने आरोपियों को सीमित अवधि की दो सप्ताह की अंतरिम राहत जरूर दी है, लेकिन इसके बाद कानून के अनुसार सख्त कार्रवाई का रास्ता पूरी तरह खोल दिया गया है। इस फैसले को न सिर्फ जांच एजेंसियों के लिए बड़ी कानूनी मजबूती माना जा रहा है, बल्कि यह संदेश भी दिया गया है कि फर्जी दस्तावेजों और अवैध हथियारों से जुड़े मामलों में किसी भी स्तर पर ढील नहीं दी जाएगी। आगरा के इस बहुचर्चित फर्जी शस्त्र लाइसेंस रैकेट में अब आने वाले दिनों में बड़ी गिरफ्तारियों की संभावना भी जताई जा रही।

