थाने में थर्ड डिग्री का तांडव : किरावली पुलिस ने युवक को उल्टा लटकाकर तोड़े दोनों पैर, खाकी पर गिरी बड़ी गाज

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आगरा लाईव न्यूज। किरावली थाना पुलिस ने रविवार रात कानून, संविधान और मानवाधिकार—तीनों को खूंटी पर टांग दिया। हत्या के एक मामले में पूछताछ के लिए बुलाए गए युवक को थाने के भीतर उल्टा लटकाकर इस कदर पीटा गया कि उसके दोनों पैर टूट गए। थर्ड डिग्री की इस हैवानियत में पांच डंडे तक टूट गए, लेकिन पुलिसकर्मियों का दिल नहीं पसीजा। युवक चीखता-चिल्लाता रहा, गिड़गिड़ाता रहा, मुंह में कपड़ा ठूंसकर उसकी आवाज दबा दी गई। बेहोशी की हालत में उसे अस्पताल ले जाकर भर्ती कराया गया और पूरे मामले को दबाने की कोशिश शुरू हो गई। हालांकि 24 घंटे बाद जब सच्चाई सामने आई तो पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। पुलिस आयुक्त दीपक कुमार ने थाना प्रभारी किरावली नीरज कुमार, एक दारोगा और एक सिपाही को निलंबित कर दिया, जबकि निगरानी में लापरवाही पर एसीपी रामप्रवेश गुप्ता को भी पद से हटाकर ट्रैफिक भेज दिया गया।

यह सनसनीखेज मामला किरावली थाना क्षेत्र के गांव करहारा निवासी पूर्व फौजी किसान वनवीर सिंह की मौत से जुड़ा है। बीते पांच अगस्त की सुबह वनवीर सिंह का शव घर में मिला था। स्वजन ने गला घोंटकर हत्या का आरोप लगाते हुए अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। क्राइम ब्रांच, सर्विलांस समेत कई टीमें जांच कर चुकी थीं, लेकिन कोई ठोस सुराग नहीं मिला। इसी मामले में पुलिस ने वनवीर के पड़ोसी राजू पंडित को रविवार शाम पूछताछ के लिए थाने बुलाया। राजू पंडित के मुताबिक वह शाम करीब सात बजे थाने पहुंचा। रात करीब आठ बजे पुलिसकर्मी उसे थाने के एक कमरे में ले गए, जहां शाल से उसके दोनों पैर बांधकर एक डंडे की मदद से उसे उल्टा लटका दिया गया। इसके बाद थाना प्रभारी नीरज कुमार की मौजूदगी में दो दारोगा और एक सिपाही ने उस पर थर्ड डिग्री शुरू कर दी।

हत्या कबूल कराने का दबाव बनाया गया। आधे घंटे तक डंडों से बेरहमी से पीटा गया। आवाज बाहर न जाए, इसके लिए मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया। राजू का कहना है कि पिटाई के दौरान लकड़ी के चार और एक प्लास्टिक का डंडा टूट गया। जब वह बेहोश हो गया और पैरों में असहनीय सूजन आ गई, तब रात करीब दस बजे पुलिसकर्मी उसे थाने के पास स्थित किरावली अस्पताल ले गए। अस्पताल में डॉक्टरों ने दोनों पैरों में फ्रैक्चर बताया, जिसके बाद उसे आगरा रेफर कर दिया गया। आरोप है कि थाना प्रभारी ने डीसीपी को गुमराह करते हुए कहा कि डंडा लगने से पैर की अंगुली में मामूली चोट आई है। एसीपी को मौके पर भेजा गया तो उन्होंने भी वही रिपोर्ट आगे बढ़ा दी। इसके साथ ही पीड़ित के स्वजन को चुप कराने की कोशिश शुरू हुई। रुपयों का प्रलोभन दिया गया, धमकाया गया और दबाव बनाया गया। यहां तक कि पीड़ित के पिता का वीडियो बनवाया गया, जिसमें उनसे कहलवाया गया कि राजू फिसलकर गिरने से घायल हुआ है।

थर्ड डिग्री का शिकार बने राजू पंडित के पिता राधेश्याम पंडित का कहना है कि रविवार रात वह थाने पर ही मौजूद थे। रात दस बजे पुलिस उनके बेटे को अस्पताल ले जा रही थी। तब एसओ ने उन्हें घर भेजते हुए कहा कि पैर में मामूली चोट है, ड्रेसिंग कर घर भेज देंगे। सुबह पता चला कि दोनों पैरों में फ्रैक्चर है। अस्पताल पहुंचे तो वहां पहले से पुलिसकर्मी तैनात थे। एसओ वहां आए और धमकी दी कि अगर किसी को बताया तो बेटे को हत्या के मामले में जेल भेज देंगे। साथ ही इलाज कराने और रुपये देने का लालच दिया। राधेश्याम का आरोप है कि उनकी जेब में दस हजार रुपये डालने की कोशिश की गई और डराकर वीडियो बनवाया गया। 24 घंटे तक पुलिस मामले को दबाए रही, लेकिन सोमवार शाम मामला अधिकारियों तक पहुंच गया।

डीसीपी पश्चिमी जोन अतुल शर्मा खुद किरावली पहुंचे, पीड़ित और उसके स्वजन से बात की और पूरी सच्चाई जानी। इसके बाद थाना प्रभारी नीरज कुमार, दारोगा धर्मवीर और कांस्टेबल रवि मलिक को निलंबित कर दिया गया। निगरानी में लापरवाही पर एसीपी रामप्रवेश गुप्ता को पद से हटाया गया। यूपी 112 के प्रभारी सत्यवीर को नया थाना प्रभारी किरावली बनाया गया है।इस मामले में केंद्रीय पंचायती राज राज्यमंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने भी संज्ञान लिया। उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवार सोमवार को उनसे मिला था। उन्होंने पुलिस आयुक्त को फोन कर तत्काल कार्रवाई और निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए, जिसके बाद अधिकारी हरकत में आए। यह घटना कोई पहली नहीं है। आगरा कमिश्नरेट में पुलिस हिरासत में पिटाई और मौत के मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। डौकी, बरहन, जगदीशपुरा और सिकंदरा थानों में हुए मामलों ने खाकी पर पहले ही सवाल खड़े कर रखे हैं। थानों में लगे मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों वाले बड़े-बड़े बोर्ड सिर्फ दिखावा बनकर रह गए हैं। जनवरी से नवंबर तक इस वर्ष ही 500 से अधिक शिकायतें राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग तक पहुंच चुकी हैं।

किरावली की इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पूछताछ के नाम पर थानों में कानून निलंबित हो जाता है। उल्टा लटकाकर पिटाई, झूठी कहानी गढ़ने की कोशिश और पीड़ित को डराने-धमकाने का यह पूरा मामला न सिर्फ पुलिसिया बर्बरता की मिसाल है, बल्कि सिस्टम की निगरानी व्यवस्था पर भी बड़ा तमाचा है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि जांच महज निलंबन तक सीमित रहती है या दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई भी होती है।

थानों की दीवारों पर टंगे मानवाधिकार, हवालात में रौंदा जा रहा कानून

कमिश्नरेट के थानों में मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों से भरे बड़े-बड़े बोर्ड सिर्फ दिखावे की चीज बनकर रह गए हैं। दीवारों पर लिखे नियमों की स्याही अभी सूखी भी नहीं होती कि हवालात के भीतर वही नियम बेरहमी से कुचल दिए जाते हैं। पूछताछ के नाम पर मारपीट, थर्ड डिग्री और हिरासत में मौतें बताती हैं कि मानवाधिकार थानों में नहीं, सिर्फ बोर्डों तक सीमित होकर दम तोड़ रहे हैं। बीते दस वर्षों में कमिश्नरेट के कई थानों में पुलिस हिरासत लोगों के लिए जानलेवा साबित हुई है। सिकंदरा थाने में चोरी के आरोपित राजू की पिटाई से हुई मौत हो या उसी थाने की हवालात में एक हत्यारोपित का फंदे पर झूल जाना—ये घटनाएं पुलिसिया क्रूरता की कड़वी मिसालें हैं। इनके अलावा भी थानों में उत्पीड़न, मारपीट और मानसिक प्रताड़ना के दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से कई आज भी फाइलों में दबे पड़े हैं।

आंकड़े पुलिस की कार्यशैली पर करारा तमाचा हैं। इस वर्ष जनवरी से नवंबर के बीच ही 500 से अधिक शिकायतें राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग तक पहुंच चुकी हैं। कहीं एकतरफा कार्रवाई का आरोप है, तो कहीं थर्ड डिग्री और बर्बरता की शिकायत। पीड़ितों का कहना है कि शिकायत दर्ज कराने के बाद भी सुनवाई नहीं होती। यही नहीं, वर्ष 2024 में भी 500 से अधिक और 2023 में 560 से ज्यादा मामले मानवाधिकार आयोग तक पहुंचे थे। सवाल यह है कि जब शिकायतों की संख्या लगातार बढ़ रही है, तो सुधार के दावे किस हकीकत पर टिके हैं?

कानून साफ है, लेकिन थानों में उसकी खुलेआम अवहेलना हो रही है। अधिवक्ता डॉ. रवि अरोड़ा के अनुसार पुलिस संदेह के आधार पर पूछताछ कर सकती है, लेकिन थर्ड डिग्री का प्रयोग सीधे-सीधे अपराध है। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देश स्पष्ट कहते हैं कि हिरासत में किसी भी तरह की शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना गैरकानूनी है और इसके लिए दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई अनिवार्य है। इसके बावजूद हकीकत यह है कि कार्रवाई से पहले अक्सर मामला दबाने की कोशिश होती है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देश थानों में रोज़ रौंदे जा रहे हैं। गिरफ्तारी जांच और ठोस आधार पर होनी चाहिए, न कि केवल वर्दी के रौब पर। गिरफ्तारी के समय परिवार को सूचना देना अनिवार्य है, लेकिन कई मामलों में परिजन घंटों, बल्कि दिनों तक थाने के चक्कर काटते रहते हैं। हिरासत में किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक पीड़ा, गाली-गलौज या अपमानजनक व्यवहार पर रोक है, फिर भी हवालात से कराहों की आवाजें थानों की दीवारें पार करती रहती हैं।

हकीकत यह है कि मानवाधिकार संरक्षण की बातें फाइलों, बैठकों और बोर्डों तक सीमित हैं। जमीन पर तस्वीर इससे बिल्कुल उलट है, जहां खाकी के साए में कानून बेबस नजर आता है। सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि नियम क्यों टूट रहे हैं, सवाल यह भी है कि आखिर कब तक थानों की दीवारों पर टंगे मानवाधिकार, हवालात में यूं ही रौंदे जाते रहेंगे।

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