आगरा लाईव न्यूज। बुलंदशहर नेशनल हाईवे-91 पर मां-बेटी के साथ हुए जघन्य गैंगरेप के मामले में आखिरकार करीब नौ साल बाद अदालत का फैसला आया। शनिवार को पॉक्सो कोर्ट ने पांच आरोपियों को दोषी करार दिया, लेकिन यह फैसला जितना राहत देने वाला है, उतना ही न्याय प्रणाली पर गंभीर प्रश्न भी खड़ा करता है—इतना जघन्य अपराध और इंसाफ तक पहुंचने में पूरे नौ साल क्यों लगे?
29 जुलाई 2016 की रात गाजियाबाद के खोड़ा कॉलोनी निवासी एक परिवार के साथ हुई इस वारदात ने पूरे देश को झकझोर दिया था। हाईवे पर कार रोककर 14 वर्षीय किशोरी और उसकी मां के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, पुरुष सदस्यों को बंधक बनाया गया और लूटपाट की गई। घटना के समय देश भर में आक्रोश था, सड़क से संसद तक सवाल उठे थे, लेकिन पीड़ित परिवार को न्याय मिलने में लगभग एक दशक लग गया।
मामले की शुरुआती जांच पुलिस ने की, जिसमें 11 आरोपी बनाए गए। बाद में जांच सीबीआई को सौंपी गई। जांच के दौरान दो आरोपी मुठभेड़ में मारे गए, तीन आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में छोड़ दिया गया, एक आरोपी की 2019 में जेल में बीमारी से मौत हो गई। इस तरह मामला लगातार उलझता गया और अदालत तक पहुंचते-पहुंचते वर्षों बीतते चले गए। अंततः सीबीआई की ओर से पांच आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चला।
अदालत में अभियोजन पक्ष को अपने पक्ष को साबित करने के लिए 25 गवाह पेश करने पड़े। तारीख पर तारीख, गवाहों की पेशी, जांच की लंबी प्रक्रिया और न्यायिक औपचारिकताओं के चलते फैसला लगातार टलता रहा। सवाल यह भी है कि जब मामला पॉक्सो और महिला अपराध जैसे गंभीर अपराध से जुड़ा था, तो त्वरित सुनवाई क्यों नहीं हो सकी?
दोषी ठहराए गए आरोपियों में कन्नौज निवासी जुबेर उर्फ सुनील उर्फ परवेज, साजिद और फर्रुखाबाद के धर्मवीर, सुनील उर्फ सागर तथा नरेश उर्फ संदीप शामिल हैं। दोषसिद्धि के बाद सभी को न्यायिक अभिरक्षा में जिला कारागार भेज दिया गया है। सोमवार को अदालत द्वारा सजा सुनाई जाएगी।
यह फैसला पीड़ित परिवार के लिए देर से मिला इंसाफ जरूर है, लेकिन समाज और सिस्टम के लिए एक कड़ा सवाल भी छोड़ गया है, क्या न्याय इतना धीमा होना चाहिए? क्या नौ साल तक पीड़ित परिवार को इंतजार कराना न्याय कहलाता है? यह मामला एक बार फिर बताता है कि अपराधियों को सजा दिलाने के साथ-साथ न्याय प्रक्रिया को तेज और संवेदनशील बनाना भी उतना ही जरूरी है, ताकि इंसाफ देर से नहीं, समय पर मिले।

