ताजमहल को बचाएगा कौन? भ्रष्टाचार और लापरवाही ने किया ऐतिहासिक धरोहर का घेराव!

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ताजमहल के चारों ओर अवैध कब्जों की सुनामी, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को खुली चुनौती! मौन प्रशासन,

बेलगाम अतिक्रमण—क्या ताजमहल को बचा पाएगा कोई? कोर्ट का फैसला ताक पर, ताजमहल के चारों ओर उग रहे अवैध कंक्रीट के जंगल!

आगरा। ताजमहल, दुनिया के सात अजूबों में शुमार, आज भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के उच्च स्पष्ट आदेशों को ताक पर रखकर ताजमहल के 500 मीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध निर्माण बेखौफ जारी हैं। कानून की धज्जियां उड़ रही हैं, अधिकारी फाइलों में सिर गड़ाए बैठे हैं, और निर्माण माफिया मजे लूट रहा है। प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह से फेल हो चुका है, जिससे ताजमहल की ऐतिहासिक विरासत खतरे में पड़ गई है। हर तरफ अराजकता का माहौल है, और जिम्मेदार अफसर कानों में तेल डालकर बैठे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अवैध निर्माण कैसे हो रहे हैं? यह सवाल जितना सीधा है, इसका जवाब उतना ही चुभने वाला है। आगरा विकास प्राधिकरण, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नगर निगम और पुलिस-प्रशासन एक-दूसरे पर दोष मढ़ने में व्यस्त हैं, लेकिन किसी के पास इस आपराधिक लापरवाही का कोई ठोस जवाब नहीं है। नोटिस जारी होते हैं, एफआईआर दर्ज होती हैं, पर जमीन पर न कोई कार्रवाई दिखती है और न ही अवैध निर्माण रुकते हैं।

ताजा मामला तांगा स्टैंड के पास तेजी से बन रहे होटल का है, जिसे न कोई रोकने वाला है, न कोई देखने वाला। पुरानी मंडी में एक इमारत की दीवार गिराने के बजाय अंदर ही अंदर नया निर्माण खड़ा कर दिया गया, लेकिन प्रशासन को भनक तक नहीं लगी। क्या यह अनदेखी महज संयोग है या जानबूझकर आंखें मूंद ली गई हैं? क्या नगर निगम और एडीए की मिलीभगत के बिना यह संभव है?

फुटपाथों पर दुकानें लगवाने के नाम पर अवैध वसूली का खुला खेल चल रहा है। दुकानदारों से 1000 से 1500 रुपये तक की उगाही हो रही है, और फिर इन्हीं अस्थायी अतिक्रमणों को धीरे-धीरे पक्का निर्माण बना दिया जाता है। नगर निगम खुद ही इस अतिक्रमण को बढ़ावा देने में लगा है, और जब कोई आवाज उठती है, तो फाइलें घुमा दी जाती हैं। जो प्रशासन अवैध निर्माण रोकने के लिए है, वही इसे संरक्षण दे रहा है।

पश्चिमी गेट से स्टूडियो मोड़ तक, पूर्वी गेट से कुत्ता पार्क तक, और दक्षिणी गेट के आसपास अवैध निर्माणों की बाढ़ आ गई है। कुछ इमारतें तो ताजमहल से महज 100 मीटर की दूरी पर खड़ी हो चुकी हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने एफआईआर तो दर्ज करवाई, लेकिन उसका असर शून्य रहा। अदालत के आदेश हवा में उड़ाए जा रहे हैं, कानून की किताबें शोभा बढ़ाने के लिए रखी गई हैं, और जिम्मेदार अफसर मौज काट रहे हैं।

2010 के पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम के तहत 100 मीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण अवैध है। 200 मीटर के विनियमित क्षेत्र में भी निर्माण के लिए सक्षम अधिकारी की अनुमति जरूरी है। उल्लंघन करने वालों पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दो साल की सजा का प्रावधान है। लेकिन सवाल उठता है कि जब अवैध निर्माण बिना रोक-टोक जारी हैं, तो क्या यह कानून सिर्फ किताबों तक सीमित रह गया है? क्या अफसरशाही ने इसे भी नीलाम कर दिया है?

ताजमहल पश्चिमी गेट मार्केट एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 500 मीटर के दायरे में सभी व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगाने का आदेश दिया था, लेकिन इसका पालन करवाने वाला कोई नहीं है। जब जिन पर कानून लागू करवाने की जिम्मेदारी है, वही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हों, तो न्याय की उम्मीद किससे की जाए? क्या सुप्रीम कोर्ट को खुद आकर अपने फैसले लागू करवाने पड़ेंगे? क्या सरकार इस मामले को संज्ञान में लेगी, या फिर ताजमहल भी भ्रष्टाचार और लूटखसोट का शिकार बन जाएगा?

अवैध निर्माण माफिया और प्रशासन की मिलीभगत से ताजमहल का अस्तित्व खतरे में पड़ चुका है। शहर की ऐतिहासिक धरोहर को बचाने का जिम्मा जिन पर था, वही इसे बेचने में लगे हैं। अगर समय रहते इन अतिक्रमणों पर कड़ा एक्शन नहीं लिया गया, तो ताजमहल का इतिहास भ्रष्टाचार और अवैध निर्माणों के अंधेरे में खो जाएगा। प्रशासन अब भी चुप्पी साधे बैठा है, लेकिन जनता पूछ रही है—आखिर कब रुकेगा यह गोरखधंधा?

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