आगरा की सड़कें या मौत का जाल? आखिर कौन है जिम्मेदार?

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आगरा लाईव न्यूज। आगरा की सड़कें मौत का कुआं बन गई हैं, जहां हर दिन जवान जिंदगियां खत्म हो रही हैं और प्रशासन बेखबर सो रहा है। हादसों का सिलसिला ऐसा चल पड़ा है कि कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब कोई घर उजड़ न रहा हो। शनिवार को आगरा की सड़कों ने 11 लोगों की जान ले ली, लेकिन पुलिस-प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। दस दिन पहले नवविवाहित जोड़े की दर्दनाक मौत ने हर किसी को झकझोर दिया था, मगर कोई सबक नहीं लिया गया। आगरा-जगनेर रोड पर अकोला और कागारौल के बीच दो बाइकों की भिड़ंत में पांच नौजवान असमय काल के गाल में समा गए, लेकिन यह कोई पहली या आखिरी घटना नहीं थी।

सवाल यह उठता है कि आखिर ये मौतें हो क्यों रही हैं? सड़कें बेहाल हैं, ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं और पुलिस सिर्फ मूकदर्शक बनी बैठी है। जगनेर रोड पर हुए हादसे की बात करें तो चार युवक एक ही बाइक पर सवार होकर बिना किसी रोक-टोक के कागारौल तक पहुंच गए, लेकिन कहीं भी तैनात पुलिसकर्मियों ने इन्हें रोकने की जहमत तक नहीं उठाई। यह लापरवाही जानलेवा साबित हुई, लेकिन कोई जवाबदेही तय नहीं हुई। शहर में हेलमेट चेकिंग अभियान चलता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पुलिस को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। नतीजा यह कि लोग बेधड़क बिना हेलमेट फर्राटा भरते हैं और हादसे में अपनी जान गंवा बैठते हैं।

हालात इतने खराब हो चुके हैं कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर फतेहाबाद थाना क्षेत्र हादसों का अड्डा बन चुका है। तड़के के समय यहां वाहन चालकों को झपकी आने से सड़कें कब्रगाह बन रही हैं, लेकिन न यूपीडा कोई ठोस कदम उठा रही है, न ही प्रशासन को कोई चिंता है। नींद में गाड़ी दौड़ा रहे लोग मौत को बुलावा दे रहे हैं, लेकिन उन्हें सतर्क करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। वहीं, शनिवार को बड़े सहालग के कारण शहर और देहात दोनों जगहों पर भीषण जाम लगा रहा, लेकिन पुलिस का कहीं अता-पता नहीं था। आगरा-टूंडला हाईवे पर एत्मादपुर कस्बे की बरहन रोड क्रॉसिंग के पास जाम ने लोगों की रफ्तार पर ब्रेक लगा दी। चार से पांच किलोमीटर लंबी गाड़ियों की कतार लगी रही, लोग घंटों फंसे रहे, लेकिन यातायात संभालने वाला कोई नहीं था।

हालत यह थी कि सर्विस रोड तक जाम में जकड़ा था और इसी दौरान एक कार धू-धू कर जल उठी, लेकिन वहां भी पुलिस नदारद रही। एत्मादपुर से खंदौली जाने वाले मार्ग पर मुड़ी चौराहे पर आलू से लदी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और बारातों के वाहनों ने मिलकर जाम की स्थिति और बदतर कर दी। शादी समारोहों के लिए निकली बसें भी फंस गईं, लेकिन पुलिस ने इसे भी नजरअंदाज किया। पूरे जिले में ट्रैफिक का हाल बेकाबू था, मगर पुलिस को इससे कोई लेना-देना नहीं था। अगर ट्रैफिक कंट्रोल किया जाता, तो ना सिर्फ लोगों को घंटों जाम में फंसने से बचाया जा सकता था, बल्कि कागारौल में हुए भयावह सड़क हादसे को भी टाला जा सकता था। लेकिन प्रशासन को इसकी परवाह ही कहां है? जब तक मौतें होती रहेंगी और परिवार बर्बाद होते रहेंगे, तब तक शायद कोई जागेगा, लेकिन तब तक न जाने कितने घरों के चिराग बुझ चुके होंगे।

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