होली में जश्न की आड़ में नशे की लहर! आगरा में 14 करोड़ की शराब पर जनता के सवालहोली में मस्ती या बेकाबू नशा? 14 करोड़ की शराब बिक्री ने खड़े किए कई सवाल!
आगरा लाईव न्यूज। होली के रंगों में शराब की नदियां बह गईं, लेकिन क्या यह मस्ती सिर्फ जश्न तक सीमित रही, या फिर इसके पीछे कई बड़े सवाल भी खड़े होते हैं? दो दिनों में आगरा में 14 करोड़ रुपये की शराब बिक गई, लेकिन क्या यह शहर के लिए चिंता का विषय नहीं? रंग-गुलाल के साथ छलकते जाम क्या होली की असली परंपरा हैं? क्या प्रशासन का शराब बिक्री पर लगाम लगाने का दावा सिर्फ कागजी साबित हुआ?
13 मार्च को छोटी होली पर सुबह से ही ठेकों के बाहर लंबी कतारें लग गईं, और अकेले इस दिन 11 करोड़ रुपये की शराब गटक ली गई। 14 मार्च को बड़ी होली के दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक ठेके बंद रखने का आदेश था, लेकिन शराब के ठेकेदारों और शौकीनों ने इसका तोड़ निकाल लिया। जैसे ही ठेके खुले, महज 5 घंटे में 3 करोड़ रुपये की शराब बिक गई, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दिन में जब ठेके बंद थे, तब भी शराब की बिक्री कैसे हो रही थी? क्या यह अवैध बिक्री का खेल नहीं?
शिकायतें आईं कि कई ठेकों पर शटर बंद करके अंदर ही अंदर शराब बेची गई, और ओवररेटिंग भी जमकर हुई—विदेशी शराब और बीयर पर 10 से 20 रुपये प्रति बोतल ज्यादा वसूला गया। क्या प्रशासन इस गड़बड़ी से अनजान था, या फिर यह सब मिलीभगत से हुआ? आबकारी विभाग भले ही 14 करोड़ की शराब बिक्री को वैध आंकड़ा बता रहा हो, लेकिन क्या यह आंकड़ा दिखाता है कि शहर किस ओर बढ़ रहा है?
क्या शराब के बढ़ते कारोबार के पीछे कोई अघोषित नशे की संस्कृति पनप रही है? और अगर ऐसा है, तो इसका असर समाज पर क्या पड़ेगा? बीते साल होली पर तीन दिन में 17 करोड़ की शराब बिकी थी, इस बार दो दिनों में 14 करोड़ का आंकड़ा पार हो गया। क्या यह रुझान चिंताजनक नहीं? होली खुशी और भाईचारे का त्योहार है, लेकिन क्या इस त्योहार को शराब में डुबो देना सही है? शहर की जनता को सोचना होगा कि यह होली का जश्न है या नशे की होली? प्रशासन को भी जवाब देना होगा कि अवैध शराब बिक्री और ओवररेटिंग पर आखिर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?